नई दिल्ली: केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री किरेन रिजिजू ने गुरुवार (8 अगस्त) को लोकसभा में वक्फ अधिनियम संशोधन विधेयक 2024 पेश किया. विपक्ष द्वारा इस विधेयक का जोरदार विरोध देखने को मिला. विपक्ष ने इसे देश के मुसलमानों को निशाना बनाने वाला असंवैधानिक बिल बताया, जिसके बाद विधेयक लोकसभा में अटक गया और इसे संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजे जाने का प्रस्ताव किया गया.
मालूम हो कि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की ओर से प्रस्तावित संशोधन विधेयक में वक्फ अधिनियम 1995 का नाम बदलकर ‘एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम’ किया गया है. इसे लेकर सरकार का दावा है कि ये संशोधन ‘क़ानून में मौजूद ख़ामियों को दूर करने और वक्फ की संपत्तियों के प्रबंधन और संचालन’ को बेहतर बनाने के लिए जरूरी हैं.
इसका एक उद्देश्य महिलाओं के विरासत अधिकारों को सुनिश्चित करना भी बताया गया है. इसके अलावा संशोधन विधेयक के ‘उद्देश्यों और कारणों’ के अनुसार, वक्फ को ऐसा कोई भी व्यक्ति संपत्ति दान दे सकता है जो कम से कम पांच सालों से इस्लाम का पालन करता हो और जिसका संबंधित ज़मीन पर मालिकाना हक हो.
प्रस्तावित संशोधन के तहत अतिरिक्त कमिश्नर के पास मौजूद वक्फ की ज़मीन का सर्वे करने के अधिकार को वापस ले लिया गया और उनकी बजाय ये ज़िम्मेदारी अब ज़िला कलेक्टर या डिप्टी कमिश्नर को दे दी गई है. केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य स्तर पर वक्फ बोर्ड में दो ग़ैर मुसलमान प्रतिनिधि रखने का प्रावधान किया गया है. नए संशोधनों के तहत बोहरा और आग़ाख़ानी समुदायों के लिए अलग ‘औकाफ बोर्ड’ की की स्थापना की भी बात कही गई है.
विधेयक में धारा 40 के हटाने का प्रावधान है,जिसके तहत वक्फ बोर्ड के पास कोई संपत्ति वक्फ संपत्ति है या नहीं तय करने का अधिकार है. अब इसकी जगह नए बिल में जिला कलेक्टर को यह निर्धारित करने में मध्यस्थ बनाया गया है कि कोई सरकारी संपत्ति वक्फ संपत्ति है या नहीं.
गुरुवार को इस विधेयक को जैसे ही सदन में पेश किया गया, विपक्ष की ओर से एक सूर में इसका विरोध देखने को मिला. ‘इंडिया’ गठबंधन के सभी दलों- कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) (शरद पवार), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (सीपीआई (एम)), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी), नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के साथ-साथ ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने कानून का विरोध किया.
हालांकि, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो प्रमुख सहयोगी जनता दल यूनाइटेड (जदयू)) और तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) ने विधेयक का समर्थन किया. लेकिन बाद में ये भी कहा कि वह इसे संसदीय समिति को भेजे जाने का कोई विरोध नहीं है.
वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी), जिसने नरेंद्र मोदी के पिछले दो कार्यकालों के दौरान संसद में भाजपा द्वारा लाए गए सभी कानूनों का समर्थन किया था, ने भी इस विधेयक का विरोध किया.