लखनऊ विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की प्रमुख डॉ. अर्चना शुक्ला के मार्गदर्शन में शोधार्थी अभिलाष सिंह ने, एक महत्वपूर्ण अध्ययन किया है, जिसमें मानसिक विकार जैसे की स्किजोफ्रेनिया, बाइपोलर डिसऑर्डर और मिर्गी से पीड़ित व्यक्तियों के प्रथम श्रेणी परिजनों के सोचने की क्षमता और आत्म-जागरूकता की तुलना की गई स्वस्थ व्यक्तियों से की गई।
इस अध्ययन से पता चला कि इन परिजनों की मानसिक क्षमताएँ स्वस्थ लोगों के मुकाबले अलग थीं। विशेष रूप से, स्किजोफ्रेनिया के मरीजों के प्रथम श्रेणी परिजनों को याददाश्त और निर्णय लेने के कार्यों में अधिक कठिनाइयाँ थीं। हालांकि, बाइपोलर डिसऑर्डर और मिर्गी के मरीजों के प्रथम श्रेणी परिजनों में यह समस्या तुलनात्मक रूप से कम थी। इसके अलावा, स्किजोफ्रेनिया के मरीजों के प्रथम श्रेणी परिजनों को अपनी मानसिक क्षमताओं का सही से अहसास नहीं था, जिसका मतलब यह था कि वे अक्सर अपनी सोचने की क्षमता को समझ नहीं पाते थे।
यह शोध हमें यह समझने में मदद करता है कि मानसिक विकार परिवारों को कैसे प्रभावित कर सकते हैं, इस शोध से यह उजागर होता है कि जिन व्यक्तियों में इस प्रकार के विकार पाए जाते है उन व्यक्तियों के प्रथम श्रेणी परिजनों की मानसिक योग्यताओं का मूल्यांकन किया जाना चाहिए इससे उन लोगों के लिए बेहतर उपचार विकसित करने में इस्तेमाल किया जा सकता है।WHO के अनुसार, दुनिया भर में 1% से 2% लोग शिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित हैं। WHO के 2020 के “Global Burden of Disease Study” के अनुसार, बाइपोलर डिसऑर्डर का वैश्विक प्रसार लगभग 0.6% से 1.2% के बीच है।
Global Burden of Disease 2019 के अनुसार, मिर्गी के कारण 1.1% वैश्विक बीमारी का बोझ है।यह आंकड़ा विकसित और विकासशील देशों में समान रूप से पाया जाता है। यह बढ़ते हुए आंकड़े यह दर्शाते है इन मानसिक विकारों से ग्रसित व्यक्तियों के प्रथम श्रेणी परिजनों का समय समय मानसिक क्षमताओं का मूल्यांकन किया जाना चाहिए जिससे ऐसे विकारों से होने वाले दुष्प्रभाव का समय रहते उपचार किया जा सके।