लखनऊ विश्वविधालय के दर्शनशास्त्र विभाग के द्वारा सैटरडे सेमिनार की विशेष श्रृंखला में विभागाध्यक्षा डॉ० रजनी श्रीवास्तव के संरक्षण में एक व्याख्यान का आयोजन किया गया । इस व्याख्यान में दर्शनशास्त्र विभाग की शोध छात्रा अमूल्या बाजपेई ने अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया । उनके द्वारा प्रस्तुत व्याख्यान का विषय “Epistemic Dimensions of Sociology of Knowledge: Thoughts on Ideology and Utopia” था। उन्होंने अपने व्याख्यान मे “आदर्शवाद और यूटोपिया” (Ideology and Utopia) प्रसिद्ध जर्मन समाजशास्त्री कार्ल मानहाइम द्वारा लिखी गई एक पुस्तक की चर्चा की। इस पुस्तक में मानहाइम ने विचारधारा (Ideology) और यूटोपिया (Utopia) के बीच के रिश्ते का गहराई से विश्लेषण किया है और यह बताया है कि कैसे समाज और राजनीति के विभिन्न पहलू इन दोनों सिद्धांतों से प्रभावित होते हैं। मानहाइम के अनुसार, विचारधारा वह मानसिकता है जो व्यक्ति या समूह के दृष्टिकोण को आकार देती है, जो उनकी सामाजिक स्थिति, संस्कृति और इतिहास से जुड़ी होती है। यह सामान्यत: यथास्थिति को बनाए रखने की कोशिश करती है और इसलिए यह सत्ताधारी वर्गों के हितों की रक्षा करती है। दूसरी ओर, यूटोपिया का अर्थ है एक आदर्श समाज का विचार, जो वर्तमान समाज से पूरी तरह भिन्न होता है। यूटोपिया आमतौर पर समाज में सुधार या परिवर्तन की आवश्यकता पर जोर देता है और इसमें समाज की आदर्श स्थिति की कल्पना की जाती है।
मानहाइम ने यह बताया कि विचारधारा और यूटोपिया दोनों समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन उनके कार्य और प्रभाव में अंतर होता है। विचारधारा वास्तविकता के भीतर काम करती है, जबकि यूटोपिया उस वास्तविकता से परे आदर्शों की ओर इशारा करता है। मानहाइम का यह तर्क था कि हर विचारधारा किसी न किसी रूप में एक सामाजिक वर्ग या समूह द्वारा आकारित होती है। इसका मतलब यह है कि हर विचारधारा अपने समय और स्थान के हिसाब से उसी समूह के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करती है। यूटोपिया का जो स्वरूप मानहाइम ने प्रस्तुत किया है, वह आमतौर पर एक भविष्यवादी दृष्टिकोण है, जिसमें समाज के वर्तमान ढांचे और असमानताओं से बाहर एक आदर्श और समान समाज की कल्पना की जाती है। यूटोपिया समाज की आलोचना करता है और इसे सुधारने के लिए सक्रिय प्रयासों की आवश्यकता को स्वीकार करता है। मानहाइम ने यह भी बताया कि विचारधारा और यूटोपिया दोनों के बीच एक मौलिक अंतर है। विचारधारा सामाजिक वास्तविकता के भीतर समाहित होती है और यथास्थिति बनाए रखती है, वहीं यूटोपिया भविष्य के एक आदर्श समाज का निर्माण करने के लिए एक क्रांतिकारी दृष्टिकोण को प्रस्तुत करता है।
विचारधाराएं समाज में मौजूदा शक्ति संरचनाओं को बनाए रखती हैं, जबकि यूटोपिया उन संरचनाओं को चुनौती देने और एक नई समाज व्यवस्था बनाने की कोशिश करता है। इसके पश्चात उन्होंने प्लेटो के कालीपोलिस के सिद्धांत की तुलना भी इस सिद्धांत से की।
सेमिनार में दर्शनशास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष डॉक्टर रजनी श्रीवास्तव, डॉक्टर प्रशान्त शुक्ला , डॉक्टर राजेश्वर यादव एवं डॉक्टर ममता सिंह उपस्थित रही। सेमिनार के सफलता पूर्वक समापन में विभाग के अन्य शोध छात्रों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।