लखनऊ : मानवीय संवेदनाओं से हटकर दौलत के प्रति मोह और इंसानी हसरतों पर करारा व्यंग्य करते नाटक कंजूस का मंचन नौशाद संगीत डेवलेपमेंट सोसाइटी ने अतहर के निर्देशन में शाम वाल्मीकि रंगशाला गोमतीनगर में किया गया। इस अवसर पर प्रतिष्ठित नौशाद सम्मान भी प्रदान किये गये।
संस्कृति मंत्रालय नई दिल्ली के रंगमण्डल अनुदान के तहत नाट्य मंचन से पहले नौशाद संगीत सम्मान से नौटंकी विशेषज्ञ आतमजीत सिंह, रंगनेत्री अचला बोस व मृदुला भारद्वाज, अभिनेता नवाब मसूद अब्दुल्लाह तथा प्रो. फरजाना मेहदी जी को अलंकृत किया गया। सम्मान अतिथियों के तौर पर न्यायमूर्ति मनीष कुमार, जस्टिस आलोक माथुर, जस्टिस संगीता चन्द्रा और इरा चिकित्सा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.अब्बास मेंहदी ने प्रदान किये।
फ़्रेंच नाटककार मौलियर द्वारा सत्रहवीं सदी में लिखे इस नाटक के हजरत आवारा के मुस्लिम परिवेश में किये रूपांतरण के केन्द्र में एक कंजूस लेकिन रईस विधुर मिर्जा सखावत बेग और उसका बेटा मर्रुख और बेटी अजरा है। नाटक में कई दिलचस्प मोड़ आते हैं, जो देखने वालों को लगातार बांधे रखकर हंसाते हैं। कंजूस पिता बेटी की शादी एक अमीर लड़के से करना चाहता है लेकिन बेटी अजरा एक साधारण लड़के नासिर से प्यार करती है और उसी से शादी करना चाहती है। वहीं कंजूस का बेटा अपने से उम्र में बड़ी औरत मरियम से शादी की इच्छा रखता है, जबकि मिर्जा खुद मरियम से निकाह करना चाहते हैं। मिर्जा के घर में इन तीनों के अतिरिक्त कजरा के प्रेमी नौकर नासिर, कोचवान व बावर्ची अल्फू के साथ नम्बू नौकरी करते हैं।
स्वभाव से कन्जूस होने के साथ-साथ शक्की मिज़ाज के मिर्जा ने घर के बगीचे की जमीन में दस हजार अशर्फियां दबाकर महफूज रखी हैं। मिर्जा को हमेशा इस बात का डर रहता है कि नौकर कहीं उसकी रकम चुरा न ले। इधर फर्रुख और अजरा अपने-अपने मोहब्बत की दास्तान सुनाकर शादी की योजना बनाते हैं। इसी बीच मिर्जा वहाँ पहुँचकर मरियम से अपनी शादी के बारे में फर्रुख और अजरा से राय पूछता है। यह जानकर फर्रुख मियां के पैरों तले जमीन खिसक जाती है। बाप-बेटे में खूब कहा सुनी होती है। लेकिन मिर्जा अपने इरादे से टस से मस नहीं होते। साथ ही मिर्जा अपनी बेटी अजरा का निकाह असलम साहब के साथ करवाने की जिद पर उतर आते हैं।