हाल ही में बाल विवाह निषेध अधिनियम (2006) में संशोधन किया गया है, जिसमें महिलाओं की विवाह की कानूनी आयु 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष की गई है। यह निर्णय पूर्व समता पार्टी प्रमुख जया जेटली के नेतृत्व वाली चार सदस्यीय टास्क फोर्स की सिफारिश पर आधारित है। लखनऊ विश्वविद्यालय के विधि संकाय ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म गूगल मीट के माध्यम से महिलाओं के लिए कानूनी विवाह की आयु 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष करने के मुद्दे को उठाने के लिए “विवाह की आयु और महिला अधिकारों की दुविधा” शीर्षक से एक वेबिनार का आयोजन किया। सत्र में कानूनी, सामाजिक और सांस्कृतिक सुधारों के प्रभावों पर चर्चा की गई, जिसमें महिलाओं के अधिकारों, सामाजिक मानदंडों और इसके कार्यान्वयन से जुड़ी चुनौतियों पर इसके प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया गया।
वेबिनार की शुरुआत उद्घाटन सत्र से हुई जहां लखनऊ विश्वविद्यालय के द्वितीय परिसर निदेशक प्रो. आर. के. सिंह ने प्रमुख और डीन प्रो. बंशीधर सिंह ने मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति श्री सुधीर कुमार सक्सेना, प्रो. मो. असद मालिक, जामिया मीलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, लखनऊ उच्चन्यालय के अधिवक्ता सूर्य मनी रायकवार, प्रो. किरण गुप्ता, दिल्ली विश्वविद्यालय, डॉ. रंगास्वामी डी., कर्नाटक राज्य विधि विश्वविद्यालय, डॉ. ऋचा सक्सेना, लखनऊ विश्वविद्यालय एवं विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों और सत्र के प्रतिभागियों का स्वागत किया। सत्र को संबोधित करते हुए डॉ. राकेश ने कहा कि सत्र का उद्देश्य महिलाओं की शादी की उम्र में वृद्धि की प्रासंगिकता की पहचान करना है जो जया जेटली आयोग की सिफारिश पर किया गया था। उन्होंने यह भी विस्तार से बताया कि कैसे पुराने रीति-रिवाजों और पौराणिक कथाओं ने शादी की उम्र को प्रभावित किया है। उन्होंने विभिन्न देशों के विवाह की उम्र के कानून के बारे में भी जानकारी दी जो हर देश में अलग-अलग है। साथ ही उन्होंने इस्लामिक कानून और हिंदू कानून की तुलना करते हुए कहा कि इस्लामिक कानून में यौवन के आधार पर विवाह की न्यूनतम आयु पर विचार किया जाता है।
उसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय के विधि संकाय के संकायाध्य प्रो. (डॉ) बंशी धर सिंह ने संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि और सत्र के प्रतिभागियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि इस सत्र का उद्देश्य महिलाओं की विवाह आयु में वृद्धि के विषय पर भारत भर के विभिन्न विश्वविद्यालयों से एकत्रित विभिन्न प्रोफेसरों की राय पर चर्चा करना था।
सत्र के मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति श्री सुधीर कुमार सक्सेना ने संबोधित करते हुए वेबिनार के आयोजकों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इस सत्र का उद्देश्य प्रस्तावित कानून का पूरी तरह से अध्ययन करना है। इस सत्र के माध्यम से कानून के प्रभावों और व्याख्या को समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि इसका मूल कारण बाल विवाह को रोकना है। उन्होंने यह कहते हुए समापन किया कि विवाह की आयु में वृद्धि तब तक अच्छा विचार नहीं होगा जब तक कि ग्रामीण लोगों की शिक्षा, स्वास्थ्य की स्थिति बेहतर नहीं हो जाती। साथ ही उन्हें सरकारी नीतियों के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है। डॉ. ऋचा सक्सेना ने सत्र में सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा कि इस बहस में जिन कारकों पर विचार करने की आवश्यकता है, वे हैं महिलाओं की आयु, पसंद और अधिकार। सत्र के मुख्य वक्ता प्रोफेसर मोहम्मद असद मलिक ने आभार व्यक्त करते हुए विवाह की आयु पर पिछले प्रावधानों के बारे में बताया। उन्होंने विवाह की आयु को सहमति की आयु के बराबर न मानने के बारे में चर्चा की। उन्होंने यह भी कहा कि आयु प्रावधान में वृद्धि से स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों, अच्छी शिक्षा और अवसरों तक पहुँच, महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण और बाल विवाह की रोकथाम में सुधार होगा। उन्होंने सतत विकास लक्ष्य 2030 के बारे में भी चर्चा की, जिसमें बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाना है।
वेबिनार के पैनल चर्चा में विभिन्न विश्वविद्यालयों के विभिन्न प्रसिद्ध प्रोफेसरों के द्वारा कानून के कार्यान्वयन में विभिन्न चुनौतियों पर चर्चा की गई। प्रो. किरण गुप्ता (दिल्ली विश्वविद्यालय) ने विभिन्न अन्य व्यक्तिगत कानूनों के बीच तुलना की, जो हिंदू कानूनों, इस्लामी कानूनों और ईसाई कानूनों के बीच थी। उन्होंने विवाह के आयु मानदंडों के बारे में बताया जो हर कानून में अलग-अलग हैं। उन्होंने शारदा अधिनियम और हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में मौजूद प्रावधानों के बारे में भी बताया। उन्होंने गोवा में समान नागरिक संहिता के निहितार्थों पर भी चर्चा की और यह भी कहा कि यह पूरे भारत के लिए नहीं होना चाहिए। उन्होंने समान नागरिक संहिता के भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के बारे में चर्चा की और इसे हाल ही में किए गए संशोधन के अनुरूप कैसे बनाया जा सकता है। अन्य वक्ता डॉ. जय शंकर सिंह (कुलपति, राजीव गांधी राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय पटियाला) ने कहा कि 12 से 20 वर्ष की आयु के बीच बच्चे के शरीर में कई शारीरिक परिवर्तन होते हैं। आजकल इस उम्र में बच्चों पर अतिरिक्त प्रतिस्पर्धा के दबाव के कारण शरीर का विकास अच्छा नहीं होता है। उन्होंने इस विषय पर बेहतर चर्चा के लिए कुछ चिकित्सा पेशेवरों को भी शामिल करने का सुझाव दिया। पैनल की अन्य वक्ता डॉ. निशा चव्हान ने कहा कि विवाह व्यक्तिगत कानूनों का एक हिस्सा है और व्यक्तिगत कानून धार्मिक कानूनों का एक हिस्सा हैं जो रीति-रिवाजों पर आधारित हैं। चूंकि हमारे देश में विभिन्न धर्म और मान्यताएं हैं, इसलिए विषय-वस्तु में बहुत विविधता और जटिलताएं हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि यह विडंबना है कि भारत में बाल विवाह पर इतने सारे कानून होने के बाद भी बाल विवाह की वैधता को चुनौती दी जा सकती है और यह अभी भी स्पष्ट नहीं है। उन्होंने इंडिपेंडेंट थॉट बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के एक ऐतिहासिक फैसले पर जोर दिया जिसमें विवाह की उम्र से संबंधित प्रावधान को चुनौती दी गई थी। एक अन्य वक्ता प्रो. (डॉ.) रंगास्वामी ने कहा कि विवाह की सही उम्र निर्धारित करने के लिए परिपक्वता की मानसिकता की आवश्यकता होती है जिसे प्रस्तावित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि केवल विकसित देश ही बाल विवाह की समस्या का सामना नहीं कर रहे हैं बल्कि अमेरिका जैसे विकसित देश भी इस समस्या का मुकाबला करने में सक्षम नहीं हैं।