सांसद पक्ष के अधिवक्ता अरविंद मसलदान की ओर से तर्क रखा गया कि एफआईआर में घटना का दिन नहीं लिखा गया है। साथ ही जो उम्र दर्ज है वह भी ठीक नही है। उन्होंने बताया कि दुष्कर्म के मामले में अंतरिम जमानत मिल सकती है, ऐसे में उनके पक्ष को राहत मिलनी चाहिए।
उन्होंने यह पक्ष भी रखा कि जिन श्रेणी के लोगों को जमानत नहीं मिलती है। उसमें सांसद नहीं आते, वहीं पीड़िता पक्ष के अधिवक्ता शैलेंद्र मिश्र बडकऊ ने तर्क रखा की एमपी का पद जिसकी सहमति से संविधान तक में हस्तक्षेप हो सकता है। ऐसे मामले में उनको जमानत नहीं मिलनी चाहिए। सांसद के पुत्र और उनके साथियों ने सुलह किए जाने का दबाव बनाते हुए सोशल मीडिया पर पीड़िता व उसके परिवार को बदनाम करने का प्रयास किया। इसका केस भी दर्ज हुआ है। ऐसे में जमानत नहीं मिलनी चाहिए।
सांसद के पक्ष ने यह तर्क भी रखा कि दोनों के बीच जो भी शारीरिक संबंध बने वह मर्जी से बने हैं। ऐसे में दुष्कर्म का आरोप बनता ही नहीं है। शाम करीब पौने छह बजे पीड़िता के अधिवक्ता शैलेंद्र मिश्र बडकऊ ने पुष्टि करते हुए बताया कि सांसद की अंतरिम जमानत की याचिका को खारिज कर दिया गया है।